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Sunday, April 21, 2013

फुलवारी


जादू की छड़ी इला प्रवीन

एक रात की बात है शालू अपने बिस्तर पर लेटी थी। अचानक उसके कमरे की खिडकी पर बिजली चमकी। शालू घबराकर उठ गई। उसने देखा कि खिडकी के पास एक बुढिया हवा मे उड़ रही थी। बुढ़िया खिडकी के पास आइ और बोली ``शालू तुम मुझे अच्छी लड़की हो। इसलिए मैं तुम्हे कुछ देना चाहती हूँ।'' शालू यह सुनकर बहुत खुश हुई।

बुढिया ने शालू को एक छड़ी देते हुए कहा ``शालू ये जादू की छड़ी है। तुम इसे जिस भी चीज की तरफ मोड़ कर दो बार घुमाओगी वह चीज गायब हो जाएगी।'' अगले दिन सुबह शालू वह छड़ी अपने स्कूल ले गई। वहा उसने शैतानी करना शुरू किया। उसने पहले अपने समने बैठी लड़की की किताब गायब कर दी फिर कइ बच्चों की रबर और पेंसिलें भी गायब कर दीं। किसी को भी पता न चला कि यह शालू की छड़ी की करामात है।

जब वह घर पहुँची तब भी उसकी शरारतें बंद नही हुई। शालू को इस खेल में बडा मजा आ रहा था। रसोई के दरवाजे के सामने एक कुरसी रखी ती। उसने सोचा, ``क्यों न मै इस कुरसी को गायब कर दूँ। जैसे ही उसने छडी घुमाई वैसे ही शालू की माँ रसोइ से बाहर निकल कर कुरसी के सामने से गुजरीं और कुरसी की जगह शालू की माँ गायब हो गईं।

शालू बहुत घबरा गई और रोने लगी। इतने ही में उसके सामने वह बुढिया पकट हुई। शालू ने बुढिया को सारी बात बताई। बुढिया ने शालू से कहा `` मै तुम्हारी माँ को वापस ला सकती हू लेकिन उसके बाद मै तुमसे ये जादू की छडी वापस ले लूगी।''

शालू बोली ``तुम्हे जो भी चाहिए ले लो लेकिन मुझे मेरी माँ वापस ला दो।'' तब बुढिया ने एक जादुई मंत्र पढ़ा और देखते ही देखते शालू की माँ वापस आ गई। शालू ने मुड़ कर बुढ़िया का शुक्रिया अदा करना चाहा लेकिन तब तक बुढ़िया बहुत दूर बादलों में जा चुकी थी। शालू अपनी माँ को वापस पाकर बहुत खुश हुई और दौडकर गले से लग गई।

Tuesday, August 21, 2012

तीन सवाल :: अकबर बीरबल

 

 

 महाराजा अकबर, बीरबल की हाज़िरजवाबी के बडे कायल थे. उनकी इस बात से दरबार के अन्य मंत्री मन ही मन बहुत जलते थे. उनमें से एक मंत्री, जो महामंत्री का पद पाने का लोभी था, ने मन ही मन एक योजना बनायी. उसे मालूम था कि जब तक बीरबल दरबार में मुख्य सलाहकार के रूप में है उसकी यह इच्छा कभी पूरी नहीं हो सकती.

एक दिन दरबार में अकबर ने बीरबल की हाज़िरजवाबी की बहुत प्रशंसा की. यह सब सुनकर उस मंत्री को बहुत गुस्सा आया. उसने महाराज से कहा कि यदि बीरबल मेरे तीन सवालों का उत्तर सही-सही दे देता है तो मैं उसकी बुद्धिमता को स्वीकार कर लुंगा और यदि नहीं तो इससे यह सिद्ध होता है की वह महाराज का चापलूस है. अकबर को मालूम था कि बीरबल उसके सवालों का जवाब जरूर दे देगा इसलिये उन्होंने उस मंत्री की बात स्वीकार कर ली.

उस मंत्री के तीन सवाल थे -

१. आकाश में कितने तारे हैं?
२. धरती का केन्द्र कहाँ है?
३. सारे संसार में कितने स्त्री और कितने पुरूष हैं?

अकबर ने फौरन बीरबल से इन सवालों के जवाब देने के लिये कहा. और शर्त रखी कि यदि वह इनका उत्तर नहीं जानता है तो मुख्य सलाहकार का पद छोडने के लिये तैयार रहे.

Akbar Birbal
बीरबल ने कहा, "तो सुनिये महाराज".

पहला सवाल - बीरबल ने एक भेड मँगवायी. और कहा जितने बाल इस भेड के शरीर पर हैं आकाश में उतने ही तारे हैं. मेरे दोस्त, गिनकर तस्सली कर लो, बीरबल ने मंत्री की तरफ मुस्कुराते हुए कहा.

दूसरा सवाल - बीरबल ने ज़मीन पर कुछ लकीरें खिंची और कुछ हिसाब लगाया. फिर एक लोहे की छड मँगवायी गयी और उसे एक जगह गाड दिया और बीरबल ने महाराज से कहा, "महाराज बिल्कुल इसी जगह धरती का केन्द्र है, चाहे तो आप स्व्यं जाँच लें". महाराज बोले ठीक है अब तीसरे सवाल के बारे में कहो.

अब महाराज तीसरे सवाल का जवाब बडा मुश्किल है. क्योंकि इस दुनीया में कुछ लोग ऐसे हैं जो ना तो स्त्री की श्रेणी में आते हैं और ना ही पुरूषों की श्रेणी. उनमें से कुछ लोग तो हमारे दरबार में भी उपस्थित हैं जैसे कि ये मंत्री जी. महाराज यदि आप इनको मौत के घाट उतरवा दें तो मैं स्त्री-पुरूष की सही सही संख्या बता सकता हूँ. अब मंत्री जी सवालों का जवाब छोडकर थर-थर काँपने लगे और महाराज से बोले,"महाराज बस-बस मुझे मेरे सवालों का जवाब मिल गया. मैं बीरबल की बुद्धिमानी को मान गया हूँ".

महाराज हमेशा की तरह बीरबल की तरफ पीठ करके हँसने लगे और इसी बीच वह मंत्री दरबार से खिसक लिया.

तेनालीराम का इम्तिहान

                         

मुगल बादशाह बाबर ने अपने दरबारियों से तेनाली राम की बहुत प्रशंसा सुनी थी। एक दरबारी ने कहा, "आलमपनाह, तेनाली राम की हाजिर-जवाबी और अक्लमंदी बेमिसाल है।" बाबर इस बात की सत्यता परखना चाहता था।

उसने राजा कृष्णदेव राय को एक पत्र भेजा, जिसमें उसने प्रार्थना की कि तेनाली राम को एक मास के लिए दिल्ली भेज दिया जाए, जिससे उसकी सूझबूझ का नमूना बादशाह खुद देख सकें। कृष्णदेव राय ने तेनाली राम को विदा करते समय कहा, "तुम्हारी सूझबूझ और बुद्धिमानी की परीक्षा का समय आ गया है। जाओ और अपना कमाल दिखाओ। अगर तुम पुरस्कार ले आए तो मैं भी तुम्हें एक हजार स्वर्ण मुद्राएं दूंगा। और अगर तुम पुरस्कार न प्राप्त कर सके तो मैं तुम्हारा सिर मुंडवाकर दरबार से बाहर निकाल दूंगा।"

Tenali Raman
तेनाली राम के दिल्ली पहुंचने की सूचना जब बाबर को मिली तो उसने अपने दरबारियों से कहा, "हम इस आदमी का इम्तिहान लेना चाहते हैं। मेरी ताकीद है कि आप लोग इसके मजाकों पर न हंसें। यह आदमी यहां से आसानी से इनाम हासिल करके न जाने पाए।"

दरबार में पहुंचकर तेनाली राम ने अपनी बातों से बादशाह और दरबारियों को हंसाने का प्रयत्न किया। यह क्रम पंद्रह दिन तक चलता रहा, लेकिन कोई न हंसा। सोलहवें दिन से तेनालीराम ने दरबार जाना छोड़ दिया।

एक दिन बाबर रोज की तरह सैर को निकला। साथ में एक नौकर था, जिसके हाथ में अशर्फियों की थैलियां थीं। बादशाह ने देखा कि सड़क के किनारे एक बहुत बूढ़ा व्यक्ति खोदकर उसमें आम का पौधा लगा रहा है। उस व्यक्ति की कमर झुकी हुई थी। बाबर ने उसके पास जाकर कहा, "बूढ़े मियां, यह क्या कर रहे हो?"

"आम का पेड़ लगा रहा हूं। इस इलाके में यह पेड़ कम पाया जाता है। इसलिए अच्छी बिक्री होगी।" बूढ़े ने कहा। "लेकिन आपकी उमर तो काफी अधिक है। इस पेड़ के फल खाने के लिए आप तो होंगे नहीं। फिर इस मेहनत से क्या फायदा?" बाबर ने कहा।

"आलमपनाह, मेरे अब्बाजान ने जो पेड़ लगाए थे, उनके फल मुझे खाने को मिले। इसी तरह मेरे लगाए हुए पेड़ के आम कोई और खाएगा। जब मेरे लिए अब्बाजान ने पेड़ लगाए, तो मैं दूसरों की खुशी के लिए ऐसा क्यों न करूं?" बूढ़ा बोला।

"हमें आपकी बात पसंद आई।" बाबर के कहते ही नौकर ने सौ अशर्फियों की थैली बूढ़े को दे दी। "बादशाह सलामत बहुत मेहरबान हैं।" बूढ़े ने कहा, "सब लोग पेड़ के बड़े होने पर फल खाते हैं पर मुझे इसे लगाने से पहले ही फल मिल गया है। दूसरों की भलाई करने के विचार का नतीजा ही कितना अच्छा होता है।"

"बहुत खूब!" बाबर के इशारा करते ही नौकर ने एक और थैली उसे भेंट कर दी। बूढ़ा फिर बोला, "बादशाह सलामत की मुझ पर बड़ी मेहरबानी है। यह पेड़ जब जवान होगा तो साल में एक बार फल देगा पर, आलमपनाह ने तो इसे लगाने के दिन ही दो बार मेरी झोली भर दी।"

बाबर ने इस बार भी खुश होकर उसे एक थैली देने का आदेश दिया और हंसते हुए अपने नौकर से कहा कि चलो यहां से नहीं तो यह बूढ़ा हमारा खजाना खाली कर देगा। "एक पल इंतजार कीजिए आलमपनाह," कहते हुए बूढ़े ने अपने कपड़े उतार दिए।

तेनालीराम को अपने सामने देखकर बाबर बहुत हैरान हुआ। तेनालीराम ने फिर कहा, "बादशाह सलामत बहुत मेहरबान हैं। तेनालीराम ने कुछ ही देर में आलमपनाह से तीन बार ईनाम पा लिया है।"

बाबर ने कहा, "तेनालीराम तुम्हें ईनाम देकर मुझे जरा भी अफसोस नहीं है। तुमने इसे हासिल करने के लिए बहुत समझदारी से काम लिया है।" तेनालीराम वापस विजय नगर आया। राजा ने सारी कहानी सुनकर उसे एक हजार स्वर्ण मुद्राएं ईनाम में दिए।